Hatta ki Bawadi: हट्टा की ऐतिहासिक बावड़ी और प्राचीन मंदिर की हिस्ट्री जानिए, बालाघाट का अनमोल धरोहर स्थल

Hatta ki Bawadi: हट्टा की ऐतिहासिक बावड़ी और प्राचीन मंदिर की हिस्ट्री जानिए, बालाघाट का अनमोल धरोहर स्थल

बालाघाट जिले के हट्टा गांव में स्थित एक प्राचीन बावड़ी और मंदिर, गोंड राजाओं की ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक हैं। यह स्थल न केवल स्थापत्य कला की मिसाल है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व से भी समृद्ध है। यह पूरी संरचना गोंड वंश के समय की है और इसके निर्माण की विशेषता विशाल पत्थरों को काटकर की गई अलंकरणकारी शैली में नज़र आती है।

Hatta ki Bawadi: प्राचीन बावड़ी का निर्माण और विशेषताएं

हट्टा गांव की यह बावड़ी 17वीं और 18वीं शताब्दी के दौरान बनाई गई थी। इसे विशाल चट्टानों को काटकर, तराशकर और बेहद खूबसूरती से अलंकृत किया गया है। इसका प्रवेश द्वार दो चतुर्भुजी स्तंभों से सुसज्जित है, जिनमें गोंडी शैली की मूर्तिकला देखी जा सकती है। प्रथम तल पर आठ अलंकृत स्तंभ बने हुए हैं, जो रामायण कालीन पात्रों के प्रतीक रूप में गढ़े गए हैं।

Hatta ki Bawadi: हट्टा की ऐतिहासिक बावड़ी और प्राचीन मंदिर की हिस्ट्री जानिए, बालाघाट का अनमोल धरोहर स्थल

यह संरचना भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक के रूप में चिह्नित है। इसे उस समय सैनिकों के विश्राम स्थल और छिपने के स्थान के रूप में उपयोग किया जाता था। मराठा साम्राज्य के दौरान इस स्थान का सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्व रहा है।

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प्राचीन मंदिर और गोंडी धार्मिक मान्यताएं

बावड़ी के पास स्थित एक पुराना मंदिर भी दर्शनीय है। यह मंदिर उसी काल का है, जिस काल में बावड़ी का निर्माण हुआ था। मंदिर की दीवारों पर गढ़ी गई मूर्तियाँ अब वहां नहीं हैं, उन्हें दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया गया है। यह मंदिर भी गोंडी समाज की आस्था से जुड़ा हुआ है और यहां विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं।

सामाजिक और धार्मिक आयोजन

हर वर्ष जनवरी के पहले सप्ताह में यहां गोंडी समाज का एक विशाल मेला आयोजित होता है। दो से तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में पूजा-पाठ, सांस्कृतिक कार्यक्रम और विवाह आयोजन भी होते हैं। यह स्थल आदिवासी समुदाय की आस्था और सामाजिक एकजुटता का केंद्र है।

बावड़ी की भव्यता और स्थापत्य कला

बावड़ी की गहराई में जाते हुए देखा जा सकता है कि किस प्रकार विशाल चट्टानों को काटकर सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। दीवारों पर की गई नक्काशी आज भी उतनी ही सुंदर और स्पष्ट है। भीतर जाने के रास्ते में प्रकाश व्यवस्था के लिए विशेष छिद्र बनाए गए हैं, जिससे सूरज की रोशनी अंदर तक पहुंच सके।

बावड़ी में कुल दो फ्लोर हैं। गर्मियों में इसका ऊपरी फ्लोर सूख सकता है, लेकिन निचला हिस्सा पूरे साल पानी से भरा रहता है। यह पानी न केवल ग्रामीणों के लिए उपयोगी होता है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

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रणनीतिक महत्व और सैनिक उपयोग

ऐसा माना जाता है कि यह बावड़ी पुराने समय में सैनिकों की टुकड़ियाँ छिपाने के लिए बनाई गई थी। इसका निर्माण जमीन के काफी अंदर तक किया गया है, जिससे शत्रु को इसकी जानकारी न हो। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यहां से भूमिगत सुरंग किसी अन्य स्थल तक जाती होगी, हालांकि इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है।

मूर्तिकला और तोरणद्वार

बावड़ी के भीतर प्रवेश करते ही अद्भुत तोरणद्वार देखने को मिलते हैं, जिन पर गोंड काल की नक्काशी मौजूद है। मंदिरों और बावड़ी में एक जैसे पत्थरों का उपयोग किया गया है, जो इस संरचना को और भी अधिक एकरूपता प्रदान करता है।

विरासत का संरक्षण और पर्यटन की संभावना

हट्टा की यह प्राचीन बावड़ी और मंदिर बालाघाट जिले से लगभग 17-18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। आज भी यह संरचना हर साल बरसात के दौरान पूरी तरह जलमग्न हो जाती है, फिर भी इसकी मजबूती और कलात्मकता में कोई कमी नहीं आती। यह स्थल पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए अत्यंत आकर्षक है।

निष्कर्ष

हट्टा गांव की यह ऐतिहासिक बावड़ी और मंदिर सिर्फ पत्थरों की संरचना नहीं, बल्कि एक ऐसी विरासत है जो हमें हमारे अतीत से जोड़ती है। यह स्थल गोंड संस्कृति, स्थापत्य कला और धार्मिक मान्यताओं का जीवंत उदाहरण है। यदि आप बालाघाट की यात्रा पर हों, तो हट्टा गांव की यह बावड़ी अवश्य देखने जाएं।

यह न केवल आपके ज्ञान में वृद्धि करेगी, बल्कि भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति सम्मान भी बढ़ाएगी।

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