Lanji ka Kila: गोंड राजाओं की विरासत, बलिदान की अमर गाथा और स्थापत्य की पूरी जानकारी यहाँ जानिए

Lanji ka Kila: गोंड राजाओं की विरासत, बलिदान की अमर गाथा और स्थापत्य की पूरी जानकारी यहाँ जानिए

लांजी, मध्य भारत के आदिवासी बहुल क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है, जो कभी एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था। इस क्षेत्र का ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व अत्यंत समृद्ध और गहन है। गोंड वंश के शासनकाल में लांजीगढ़ को विशेष महत्त्व प्राप्त था। कहा जाता है कि गोंड शासकों के पास कभी 18 गढ़ों का नियंत्रण था और लांजीगढ़ उन्हीं में से एक प्रमुख गढ़ था।

लांजी का स्थापत्य और पुरातात्विक महत्व

लांजीगढ़ का किला एक उत्कृष्ट स्थापत्य कला का उदाहरण है। कहा जाता है कि वर्तमान में जो किला दिखाई देता है, उसका निर्माण 12वीं शताब्दी में राजकुमारी हसला के दादा मालिकोमा ने करवाया था। यह किला गढ़ा के प्रसिद्ध राजा संग्राम शाह के 52 गढ़ों से भी प्राचीन माना जाता है।

किले का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर खुलता है, जिसके मध्य में कछुए और नाग का प्रतीक चिन्ह उकेरा गया है। किले की ऊंचाई लगभग 20 फीट है और इसके चारों कोनों पर बुर्ज बनाए गए थे, जिनमें से दो बुर्ज आज भी सुरक्षित हैं। एक बुर्ज से दूसरे बुर्ज तक जाने का मार्ग आज भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

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गोंड समाज की अस्मिता और बलिदान की गाथा

यह क्षेत्र गोंड समाज के गौरव और अस्मिता का प्रतीक रहा है। एक ऐतिहासिक घटना के अनुसार, राजकुमारी हसला ने अपने पिता और समाज के सम्मान की रक्षा के लिए बलिदान दिया था। यह कथा आज भी गोंड समाज के लोगों में आदर और गर्व के साथ सुनाई जाती है।

लांजीगढ़ का साम्राज्य कभी बालाघाट, गोंदिया, मैहर, ब्रह्मधारगढ़, खैरागढ़ और रतनपुर तक फैला हुआ था। सन 1818 में लांजीगढ़ की वीरांगना तिलका रानी ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करते हुए स्वराज के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

किले की सुरक्षा और अनूठी बनावट

लांजीगढ़ किला चारों ओर से गहरी खाई (खंडक) से घिरा हुआ था। कहा जाता है कि इन खाइयों में पानी भरा जाता था और उनमें मगरमच्छ छोड़े गए थे, जो किले की सुरक्षा के लिए एक विशेष उपाय थे। दुश्मनों के लिए यह खंदक एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच का कार्य करती थी।

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किले का निर्माण तराशे हुए बलुआ पत्थरों से किया गया था, जो इस क्षेत्र में मिलने वाले अपेक्षाकृत कम कठोर पत्थर होते हैं। मंडप के मध्य में चार-चार स्तंभ दो पंक्तियों में खड़े हैं, जो मंडप को तीन भागों में विभाजित करते हैं।

गर्भगृह अंदर से चतुर्भुजाकार है और इसका द्वार भिन्न-भिन्न मूर्तियों के अलंकरण से सुसज्जित है। भीतर के समूह की रचना नीचे से चौकोर, फिर चतुर्भुज, अष्टकोणीय और अंत में सोलह कोणीय रूप में ऊपर की ओर बढ़ती है। यह स्थापत्य शैली लांजीगढ़ की अद्वितीयता को दर्शाती है।

किले का राजमहल और अन्य संरचनाएं

जहां पर कभी राजमहल था, उसके ठीक सामने पश्चिम दिशा में एक विशाल स्नानागार स्थित है, जो अब मिट्टी में दब गया है, लेकिन उसके अवशेष आज भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। इस स्नानागार की लंबाई और चौड़ाई लगभग 60 से 70 फीट है।

मुख्य द्वार के दाहिने ओर एक बड़ा प्रांगण है, जहां पर कभी राजदरबार लगता था। दुर्भाग्यवश, आज यह क्षेत्र पूरी तरह से जमींदोज हो चुका है, लेकिन इसके अवशेष आज भी उस गौरवशाली इतिहास की गवाही देते हैं।

निष्कर्ष

लांजी न केवल गोंड समाज की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय भी है। इसके किले, स्थापत्य कला, ऐतिहासिक कथाएं और बलिदानों की गाथा आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं। यह स्थल पुरातात्विक दृष्टिकोण से अध्ययन और संरक्षण दोनों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

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