बालाघाट का इतिहास जानिए: मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक शहर, प्राकृतिक और खनिज संपदा से भरपूर जिला

बालाघाट का इतिहास जानिए: मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक शहर, प्राकृतिक और खनिज संपदा से भरपूर जिला

बालाघाट का इतिहास: बालाघाट, मध्य प्रदेश का एक प्रमुख जिला है जो राज्य के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में स्थित है। यह जिला सतपुड़ा पर्वतमाला की तलहटी में बसा है और इसकी सीमाएं महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ राज्यों से भी मिलती हैं, जिससे यह एक त्रिकोणीय सीमा वाला क्षेत्र बनता है। बालाघाट जबलपुर संभाग के अंतर्गत आता है और ऐतिहासिक, प्राकृतिक, और खनिज संपदा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

बालाघाट का इतिहास: बालाघाट का प्राचीन इतिहास

ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, बालाघाट को पहले ‘बुरा’ या ‘बुरा नगर’ के नाम से जाना जाता था। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान इसे ‘बारह घाट’ नाम से पुकारा गया, जो आगे चलकर ‘बालाघाट’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। अंग्रेजों ने 1867 में मंडला, भंडारा और सिवनी जिलों के कुछ हिस्सों को मिलाकर बालाघाट जिले का गठन किया था। आज यह जिला 1 नवंबर 1956 से स्वतंत्र मध्य प्रदेश राज्य का हिस्सा है और इसे “रेड कॉरिडोर” का हिस्सा भी कहा जाता है।

read more: Lanji ka Kila: गोंड राजाओं की विरासत, बलिदान की अमर गाथा और स्थापत्य की पूरी जानकारी यहाँ जानिए

भौगोलिक स्थिति और प्रशासनिक ढांचा

बालाघाट जिला 9245 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इसमें 10 तहसीलें, 13 कस्बे और 1384 गांव शामिल हैं। यह जिला व्‍यंगंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। साल 2022 की अनुमानित जनगणना के अनुसार, बालाघाट की कुल आबादी लगभग 23 लाख तक मानी जाती है। प्रशासनिक दृष्टि से जिले को ब्लॉक और तहसील में विभाजित किया गया है, जिनका संचालन एसडीएम, बीडीओ और तहसीलदार जैसे अधिकारी करते हैं।

read more: Hatta ki Bawadi: हट्टा की ऐतिहासिक बावड़ी और प्राचीन मंदिर की हिस्ट्री जानिए

भाषाई और सांस्कृतिक विविधता

बालाघाट के लोग मुख्य रूप से हिंदी भाषा बोलते हैं, हालांकि स्थानीय बोली और जनजातीय भाषाएं भी सुनने को मिलती हैं। इस क्षेत्र में बैगा जनजाति की भी एक महत्वपूर्ण उपस्थिति है जो यहां की संस्कृति, परंपरा और विरासत को दर्शाती है।

खनिज संपदा और आर्थिक गतिविधियां

बालाघाट खनिजों से भरपूर जिला है। यहां भरवेली क्षेत्र में एशिया की सबसे बड़ी मैंगनीज़ की खदान स्थित है। यही कारण है कि इसे “मैग्नीज नगरी” और “तांबा नगरी” के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा, यहां हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड का एक प्रमुख उपग्रह केंद्र भी स्थित है जो इस जिले की औद्योगिक पहचान को मजबूती देता है। कृषि और व्यापार भी बालाघाट की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।

read more: बालाघाट जिले के 12 प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल, कान्हा नेशनल पार्क से लेकर राजीव सागर बांध तक

नक्सलवाद की चुनौती

बालाघाट मध्य प्रदेश के उन जिलों में से एक है जो नक्सलवाद से प्रभावित रहा है। यह जिला कई वर्षों से नक्सली गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। मध्य प्रदेश में बालाघाट के अतिरिक्त सिंगरौली, मंडला, डिंडोरी, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया जैसे जिले भी इस समस्या से जूझते रहे हैं। इन जिलों में बालाघाट और सिंगरौली को सबसे अधिक प्रभावित माना गया है।

शिक्षा और उच्च संस्थान

शिक्षा के क्षेत्र में भी बालाघाट धीरे-धीरे प्रगति कर रहा है। यहां रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय से संबद्ध दो महाविद्यालय हैं। इसके अलावा, कई तकनीकी, पॉलिटेक्निक और प्रशिक्षण संस्थान भी मौजूद हैं जो युवाओं को शिक्षा और रोजगार के नए अवसर प्रदान करते हैं।

प्रकृति और वन्य जीवन की धरोहर

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर बालाघाट को “शिकारी का स्वर्ग” भी कहा जाता है। यहां बड़े-बड़े जंगल, प्राकृतिक झरने और पर्वतीय श्रृंखलाएं स्थित हैं। इस क्षेत्र में हिरण, बाघ और तेंदुए जैसे वन्य जीव पाए जाते हैं, हालांकि इनकी संख्या में गिरावट देखी जा रही है। यहां की प्राकृतिक संरचना पक्षी की उड़ान जैसे आकार की प्रतीत होती है।

प्रमुख पर्यटन स्थल

बालाघाट में कई दर्शनीय स्थल और पिकनिक स्पॉट हैं, जिनमें कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, रामजी का किला, गांगुली झरना, गांगुली बांध, लव मंदिर और बावलियों जैसे स्थान प्रमुख हैं। हालांकि नक्सली प्रभाव के चलते इन स्थलों का पर्यटन विकास अपेक्षित स्तर तक नहीं हो सका है।

परिवहन और दूरी

बालाघाट समुद्र तल से 188 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह शहर भोपाल से 438 किलोमीटर और दिल्ली से लगभग 1042 किलोमीटर दूर स्थित है। यह जिला मंडला, सिवनी, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ से लगा हुआ है और सड़क व रेल मार्गों के जरिए भोपाल, जबलपुर और इंदौर जैसे प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

निष्कर्ष

बालाघाट केवल एक जिला नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति, खनिज संपदा और प्राकृतिक सौंदर्य का एक बेहतरीन संगम है। हालांकि नक्सलवाद जैसी चुनौतियां इसे प्रभावित करती हैं, फिर भी यहां की प्राकृतिक खूबसूरती, खनिज संसाधन और जनजातीय संस्कृति इसे एक अद्वितीय पहचान देते हैं। यदि इस क्षेत्र में सतत विकास की दिशा में उचित कदम उठाए जाएं, तो यह जिला पर्यटन, शिक्षा और उद्योग के क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल कर सकता है।

Join WhatsApp

Join Now

Leave a Comment