इंदौर स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में एक अहम बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना जैसे प्रमुख सोयाबीन उत्पादक राज्यों के कृषि मंत्री, अधिकारी, वैज्ञानिक, प्रगतिशील किसान और तेल-बीज उद्योग से जुड़े प्रतिनिधि शामिल हुए।
शिवराज सिंह चौहान की बड़ी पहल
शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि विकसित भारत के निर्माण के लिए विकसित कृषि और समृद्ध किसान आवश्यक हैं। वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही रिसर्च अब सिर्फ लैब में नहीं, बल्कि किसानों के साथ मिलकर खेतों में तय होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशा-निर्देश के तहत “लैब टू लैंड” की रणनीति अपनाई जा रही है, जिससे वैज्ञानिक और किसान मिलकर खेती की समस्याओं का समाधान निकाल सकें।

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि देश में 16,000 कृषि वैज्ञानिक सक्रिय हैं, लेकिन उनके शोध का ज़मीन पर सीधा लाभ नहीं पहुंच पाता। इसी अंतर को खत्म करने के लिए “विकसित कृषि संकल्प अभियान” चलाया गया, जिसके तहत देश के 60,823 गांवों में जाकर 1.23 लाख किसानों से संवाद किया गया।
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सोयाबीन की स्थिर उत्पादकता और समाधान
शिवराज सिंह चौहान ने स्पष्ट किया कि भारत में सोयाबीन की उत्पादकता वर्षों से स्थिर बनी हुई है, जबकि अन्य देशों में यह कहीं अधिक है। उन्होंने स्वीकारा कि भारत में GM (जेनेटिकली मॉडिफाइड) बीजों का प्रयोग नहीं किया जाता, लेकिन जीनोम एडिटिंग तकनीक से उच्च उत्पादकता वाले बीज विकसित किए जा सकते हैं।
इस दिशा में कदम उठाते हुए किसानों की ज़रूरत के अनुसार रिसर्च की जाएगी। उदाहरण के तौर पर गन्ने में लाल सड़न की बीमारी या सोयाबीन में जलभराव से होने वाली जड़ों की सड़न जैसी समस्याओं पर फोकस होगा।
नई तकनीक और यांत्रिकीकरण की ओर कदम
बैठक में एक नई मशीन का डेमो भी किया गया, जो सोयाबीन की बुवाई के साथ ही दोनों ओर नालियां बनाती है, जिससे बारिश का पानी बहकर निकल जाता है और फसल की जड़ें सुरक्षित रहती हैं। शिवराज सिंह चौहान ने स्वयं ट्रैक्टर चलाकर इस तकनीक को प्रदर्शित किया।
इसके अलावा कृषि यांत्रिकीकरण पर भी ज़ोर दिया गया, क्योंकि अब खेतों में मजदूरों की कमी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। इसके लिए मशीनों का इस्तेमाल और बीज उपचार की तकनीकों पर किसानों को प्रशिक्षित करने की योजना बनाई गई है।
रोग प्रतिरोधक किस्में और बीज उपचार पर ज़ोर
सोयाबीन की फसलों में फैलने वाले एलोमोजिक जैसे रोग और अन्य बीमारियों से निपटने के लिए रोग प्रतिरोधक किस्मों के विकास पर बल दिया गया। इसके साथ ही, बीजों को बीमारियों से बचाने के लिए विशेष उपचार विधियों को किसानों के बीच प्रचारित किया जाएगा।
निष्कर्ष और आगे की दिशा
यह बैठक सोयाबीन की खेती के इतिहास, वर्तमान स्थिति और भविष्य की चुनौतियों को लेकर एक व्यापक मंथन रही। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में यह स्पष्ट हुआ कि किसानों की ज़मीनी ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए रिसर्च और तकनीकी विकास की नई दिशा तय की जाएगी।
इस अवसर पर मध्यप्रदेश के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, विधायक मधु वर्मा, मनोज पटेल, और कृषि विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।
FAQs
प्र. क्या जीएम बीजों का उपयोग किया जाएगा?
नहीं, भारत में जीएम बीजों के स्थान पर जीनोम एडिटिंग तकनीक से उच्च उत्पादकता वाले बीज तैयार किए जाएंगे।
प्र. किसान की भूमिका रिसर्च में क्या होगी?
अब रिसर्च के मुद्दे किसानों की ज़रूरत के अनुसार तय किए जाएंगे, जिससे उनके अनुभव का लाभ रिसर्च को मिले।
प्र. कौन-कौन से राज्य बैठक में शामिल हुए?
मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना जैसे प्रमुख सोयाबीन उत्पादक राज्य इस बैठक में शामिल रहे।
मेरा नाम भूमेन्द्र बिसेन है। मैं TazaSanket.in का संस्थापक और एक प्रोफेशनल ब्लॉगर हूं। इस पोर्टल के जरिए मैं मध्य प्रदेश, खासकर बालाघाट की विश्वसनीय लोकल खबरें पहुंचाता हूं। डिजिटल पत्रकारिता में मुझे 4 वर्षों का अनुभव है और मेरा उद्देश्य समाज की सच्चाई को उजागर करना है।







