Balaghat News: देवी अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर नारी सशक्तिकरण सम्मेलन

Balaghat News: देवी अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर नारी सशक्तिकरण सम्मेलन

माता देवी अहिल्याबाई होलकर का जीवन नारी सशक्तिकरण, सुशासन और आत्मनिर्भरता की प्रेरणादायी मिसाल है। उनका जीवन दर्शन आज भी समाज को दिशा दिखाता है। मध्य प्रदेश सरकार उनके विचारों से प्रेरणा लेते हुए 31 मई को भोपाल में एक भव्य महिला सशक्तिकरण सम्मेलन का आयोजन कर रही है, जिसमें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं शामिल होंगे।

इस ऐतिहासिक आयोजन में बालाघाट जिले से बड़ी संख्या में मातृशक्ति और नागरिकों का जत्था भाग लेने जा रहा है। यह सम्मेलन केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि देवी अहिल्याबाई होलकर के आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास है।

बालाघाट में 21 मई को आयोजित हुआ श्रद्धांजलि कार्यक्रम

लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर की त्रिशताब्दी जयंती के उपलक्ष्य में बालाघाट नगर पालिका परिषद के सभागार में 21 मई को विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में देवी अहिल्या के विचारों और उनके आदर्शों को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

इस अवसर पर सांसद भारती पारधी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर देशभर में 21 से 31 मई तक देवी अहिल्याबाई की त्रिशताब्दी जयंती पर विशेष पखवाड़ा मनाया जा रहा है। देवी अहिल्या समाज सुधार, धर्म और न्याय की प्रतीक रही हैं। उन्होंने अपने शासनकाल में कई मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया और समाज की खुशहाली को सर्वोपरि माना।

Balaghat News: देवी अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर नारी सशक्तिकरण सम्मेलन

न्यायप्रियता और प्रशासनिक सख्ती की जीवंत मिसाल

देवी अहिल्या का शासन एक आदर्श प्रशासनिक उदाहरण है। उन्होंने महिलाओं के लिए सेना की स्थापना की, महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया और समाज में आर्थिक समृद्धि लाने के लिए अनेक सफल प्रयोग किए। एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताया गया कि जब उनके पुत्र के रथ से एक ग्रामीण बालक की मृत्यु हो गई थी, तो महारानी अहिल्या ने न्याय के प्रतीक के रूप में अपने पुत्र को कठोर दंड दिया। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने अपने परिजनों को भी न्याय के तराजू में बराबरी से तौला।

उनकी प्रशासनिक सख्ती और निष्पक्षता ही थी, जो उनके शासन को महान बनाती है। उन्होंने सच्चे अर्थों में धर्म और न्याय का पालन किया, चाहे उसमें उनका परिवार ही क्यों न हो।

देशभर में मंदिरों के जीर्णोद्धार का लिया बीड़ा

देवी अहिल्या ने काशी विश्वनाथ से लेकर सोमनाथ मंदिर तक देशभर के अनेक मंदिरों के जीर्णोद्धार में अपना खजाना खोल दिया। यह उनके धार्मिक समर्पण और सांस्कृतिक संरक्षण की भावना को दर्शाता है। उन्होंने जिस मार्ग पर चलकर धर्म और संस्कृति को पुनर्स्थापित किया, उसी मार्ग पर आज देश के प्रधानमंत्री भी आगे बढ़ रहे हैं।

महिला सशक्तिकरण में देवी अहिल्या के विचार आज भी प्रासंगिक

नगर पालिका अध्यक्ष भारती ठाकुर ने इस अवसर पर कहा कि भारतवर्ष देवी अहिल्या के प्रति कृतज्ञ है और उनकी 300वीं जयंती के उपलक्ष्य में सरकार द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है।

पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रेखा बसेन, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष रमेश रंगलानी, नरेंद्र भैरम, और अन्य वक्ताओं ने भी इस अवसर पर उनके योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि आज जब महिलाएं टोल प्लाजा, पेट्रोल पंप और अन्य क्षेत्रों में सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं, तो यह देवी अहिल्याबाई होलकर द्वारा किए गए नारी सशक्तिकरण प्रयासों की ही परिणति है।

सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण की दिशा में प्रयास

प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेक योजनाएं शुरू की हैं। महिला किसानों को ड्रोन दीदी बनाया जा रहा है, उन्नत प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं ताकि महिलाएं आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बन सकें। देवी अहिल्याबाई की प्रेरणा से ही महिला उत्थान के इन प्रयासों को गति दी जा रही है।

कार्यक्रम में रही जनप्रतिनिधियों और महिलाओं की भारी उपस्थिति

कार्यक्रम में लालबरा जनपद अध्यक्ष देवीलता गौलवंशी, नगर पालिका उपाध्यक्ष योगेश बसेन, सभापति समीर जैसवाल, कमलेश पांचे, उज्ज्वल आमाडरे, पार्षद मनीष नेमा, भाजपा नेत्री मौसम हरीनखे, नीतू मोहारे, रिमीनाथ चावड़ा सहित नगर पालिका के अधिकारी, कर्मचारी एवं बड़ी संख्या में महिलाओं की उपस्थिति रही।

निष्कर्ष

देवी अहिल्याबाई होलकर की जयंती पर आयोजित यह आयोजन केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि उनके विचारों और आदर्शों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक प्रयास है। उनके सुशासन, न्यायप्रियता और महिला सशक्तिकरण के सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। ऐसे प्रेरणास्रोतों को जन-जन तक पहुंचाना हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी है।

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